Saturday, June 8, 2013

हाँ, अब तुझे भूल जाने को दिल करता है...


हाँ, अब तुझे भूल जाने को दिल करता है

बहुत रोये अब मुस्कुराने को दिल करता है, 
निकल कर इन घने सर्द अंधेरो की कैद से,
खिली गरम धुप में जाने को दिल करता है . 
जी भर के चैन खोया है जिन राहों में, वहीँ थोडा सुकून पाने को जी करता है, 
सूख गयी है जुबान तेरा नाम लेते लेते,
एक ओस की बूँद अब पीने को जी करता है.
कभी ना सुनी जिनकी बात हमने तेरे कारण,
उन्ही लोगो की बात मानने को जी करता है,
तेरी बेवफाई का जिक्र करते थे जो "दुसरे लोग",
उन्ही से अब कुछ और जिक्र करने को जी करता है.
कमबख्त ऐसी होंगी दूरियां कभी ना सोचा था,
इस अनहोनी पर अब यकीन करने को जी करता है,
मेरी रूह तुझे माफ करने लगी है शायद, इसीलिए, हाँ,
इसीलिए तुझे भूल जाने को जी करता है..
__© by उर्मिल नेगी